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"हेल्लो पापा मैं सुलक्षणा बोल रही हूँ। आपकी तबियत तो ठीक है।आपसे कुछ जरूरी बात करनी थी। ", सुलक्षणा ने फौन पर अपने पापा को बताया।
"हाँ मै ठीक ही हूँ तू ठीक है और दामाद जी कैसे हैं मुझसे क्या बात करनी है ?" विश्वनाथजी ने पूछा
विश्वनाथ जी अपनी बेटी को अच्छी तरह जानते थे। उनको मालूम था कि उनकी बेटी का फौन तब आता है जब उसको कुछ मदद की जरूरत हो और तब वह बहुत मीठा बोलती है। अतः विश्वनाथजी समझ गये कि आज उसे बहुत ही बडी़ मदद की जरूरत है तभी इतना मीठा बोल रही है।
"वह सब मै आपको फौन पर नही बता सकती हूँ वह मै आपको मिलकर ही बताऊँगी। आप कहीं बाहर तो नहीं हो ?" सुलक्षणा ने बताया।
" मै तो घर पर ही हूँ अब बाहर कहीं आना जाना नहीं कर पाता हूँ। तू कब आरही है ? " विश्वनाथ ने पूछा।
"देखो पापा कल ही आने का बिचार है।" सुलक्षणा ने इतना कहकर फौन काट दिया।
फौन काटकर वह अपने पति से बोली," हरीश हमें कल ही जाना है तुम अपने आफिस से कल की छुट्टी लेलो। बुड्ढे का पता नही कितने दिन का है कल को कुछ होगया फिर कुछ हाथ नही आने वाला है। उसके जिन्दे जो मिलगया वह ही अपना है इसलिए कल अवश्य चलना है।
हरीश ने हाँ में सिर हिला दिया। वह जानता था कि उसके ससुर से पैसा निकलवाना बहुत ही मुश्किल है।
दूसरे दिन सुलक्षणा अपने पति के साथ अपने मायके पहुँच गयी।सुलक्षणा ने पापा को बताया कि नवीन का एम बी बी एस के लिए एडमीशन करवाना है। हरीश ने लौन लेने की कोशिश की परन्त न तो लौन मिला न पी एफ पर लौन मिल रहा है। अतः अब आपके ही हाथ में है मुझे केसे भी बीस लाख का इन्तजाम करदो। मना मत करना।
"बीस लाख! मेरे पास बीस लाख कहाँ से आये। तू यह भी जानती है घर में चार प्राणी है और केवल मेरी पैन्सन से ही खर्चा चलता है। मेरी दवा पर ही बहुत खर्च होता है जब से तेरा भाई गया है घर का खर्चा मेरी पैन्शन से ही चल रहा है।" विश्वनाथ ने सुलक्षणा को जबाब दिया।
" पापा आपके रिटायरमैन्ट पर जो पैसे मिले थे वह तो बैंक में जमा है मुझे उनमेंसे देदो। बैसे भी आपकी पूरी सम्पत्ति में मेरा भी आधा हिस्सा बनता है मै आपसे भीख नहीं मांग रही हूँ। मुझे मेरा हिस्सा समझकर ही देदो। " सुलक्षणा हाथ फड़काते हुए बोली।
सुलक्षणा की बात सुनकर विश्वनाथ का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह बोले," मै तुझे ऐसा नहीं समझता था तूने तो कमाल कर दिया। सुलक्षणा कान खोल कर सुनले उन पैसौ की बात भी मत करना वह तो पोती की शादी के लिए है उनमें से किसीको एक पैसा नहीं मिलने वाला। " इतना कहकर वह लम्बी साँसे भरने लगे।
निर्मला जल्दी से पानी लेकर आई और बोली," दीदी यह आपके पापा है इनको कुछ होगया तो क्या होगा ? बैसे भी यह साँस के मरीज है ऊपर से आपने आकर और टैन्सन देदी। "
सुलक्षणा उसी समय पैर पटकती हुई वहाँ से बापिस जाते हुए बोली," मै अपना हिस्सा तो लेकर रहूँगी। इसके लिए मुझे कोर्ट का दरवाजा क्यो न खटखटाना पडे़। और वह चलीगयी।
निर्मला ने जल्दी से अपने ससुर को दवाई दी और बोली," पापाजी आप दीदी का जो भी हिस्सा बनता है देदो। हम सब कम खालैगे। हमसे आपकी बेइज्जती सहन नही होती है। ईश्वर पर भरोसा है वह जो करेगा वह ठीक ही होगा।"
बहू की बात सुनकर विश्वनाथ जी सोचने लगे कि अपना खून तो मुझे परेशान करके भाग गया और जो मेरा असली खून नही है वह किस तरह समझा रही है। आज पैसे की खातिर अपनी बेटी पराई होगयी है।
विश्वनाथ ने भी दुनिया देखी थी ।दूसरे दिन बैक जाकर सारा पैसा बहू के खाते में ट्रान्सफर कर दिया और वकील बुलाकर मकान भी बहू के नाम करवा दिया। विश्वनाथ ने अपने नाम कुछ नहीं रखा जिसमें से सुलक्षणा हिस्सा माँग सकती थी।।
र्नान स्टाप राइटिंग चेलैन्ज के लिए रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
28/08/2022
आँचल सोनी 'हिया'
05-Sep-2022 11:07 AM
Achha likha hai 💐🙏
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Seema Priyadarshini sahay
04-Sep-2022 09:19 PM
बहुत खूबसूरत
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Gunjan Kamal
04-Sep-2022 01:51 PM
शानदार भाग
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